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"पेन्टिंग-१ /गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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खड़खड़ाता हुआ निकला है उफ़ुक से सूरज,
 
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जैसे कीचड़ में फँसा पहिया धकेला हो किसी ने  
 
जैसे कीचड़ में फँसा पहिया धकेला हो किसी ने  
चिब्बे टिब्बे से किनारों पे नज़र ते हैं.
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चिब्बे टिब्बे से किनारों पे नज़र आते हैं.
 
रोज़ सा गोल नहीं है!
 
रोज़ सा गोल नहीं है!
 
उधरे-उधरे से उजाले हैं बदन पर  
 
उधरे-उधरे से उजाले हैं बदन पर  
 
उर चेहरे पे खरोचों के निशाँ हैं!!
 
उर चेहरे पे खरोचों के निशाँ हैं!!

23:14, 24 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण

खड़खड़ाता हुआ निकला है उफ़ुक से सूरज,
जैसे कीचड़ में फँसा पहिया धकेला हो किसी ने
चिब्बे टिब्बे से किनारों पे नज़र आते हैं.
रोज़ सा गोल नहीं है!
उधरे-उधरे से उजाले हैं बदन पर
उर चेहरे पे खरोचों के निशाँ हैं!!