भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रात/गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह=रात पश्मीने की / ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
वह दिन हमजाद था उसका!
 
वह दिन हमजाद था उसका!
  
वह आई है कि मामेरे घर में उसको दफ्न कर के,
+
वह आई है कि मेरे घर में उसको दफ्न कर के,
 
इक दीया दहलीज़ पे रख कर,
 
इक दीया दहलीज़ पे रख कर,
निशानी छोड़ दे कि महव है ये कब्र,
+
निशानी छोड़ दे कि मह्व  है ये कब्र,
 
इसमें दूसरा आकर नहीं लेटे!
 
इसमें दूसरा आकर नहीं लेटे!
  

15:37, 30 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण

मेरी दहलीज़ पर बैठी हुयी जानो पे सर रखे
ये शब अफ़सोस करने आई है कि मेरे घर पे
आज ही जो मर गया है दिन
वह दिन हमजाद था उसका!

वह आई है कि मेरे घर में उसको दफ्न कर के,
इक दीया दहलीज़ पे रख कर,
निशानी छोड़ दे कि मह्व है ये कब्र,
इसमें दूसरा आकर नहीं लेटे!

मैं शब को कैसे बतलाऊँ,
बहुत से दिन मेरे आँगन में यूँ आधे अधूरे से
कफ़न ओढ़े पड़े हैं कितने सालों से,
जिन्हें मैं आज तक दफना नही पाया!!