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ये ग्वालियर के ब्राह्मण थे और शाहजहाँ के दरबार में कविता सुनाया करते थे . इन्हें बादशाह ने पहले कविराय की और बाद में महा कविराय की उपाधि दी. इन्होंने संवत १६८८ में 'सुंदरश्रृंगार' नामक नायिका भेद का एक ग्रन्थ लिखा. कवि ने रचना की तिथि इस प्रकार दी है :-- | ये ग्वालियर के ब्राह्मण थे और शाहजहाँ के दरबार में कविता सुनाया करते थे . इन्हें बादशाह ने पहले कविराय की और बाद में महा कविराय की उपाधि दी. इन्होंने संवत १६८८ में 'सुंदरश्रृंगार' नामक नायिका भेद का एक ग्रन्थ लिखा. कवि ने रचना की तिथि इस प्रकार दी है :-- | ||
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संवत् सोरह सै बरस,बीते अठतर सीति. | संवत् सोरह सै बरस,बीते अठतर सीति. | ||
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इसके अतिरिक्त 'सिंहासनबतीसी' और 'बारहमासा' नाम की इनकी दो पुस्तकें और कही जाती हैं. यमक और अनुप्रास की ओर इनकी कुछ विशेष प्रवृति जान पड़ती है. | इसके अतिरिक्त 'सिंहासनबतीसी' और 'बारहमासा' नाम की इनकी दो पुस्तकें और कही जाती हैं. यमक और अनुप्रास की ओर इनकी कुछ विशेष प्रवृति जान पड़ती है. |
18:04, 4 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
ये ग्वालियर के ब्राह्मण थे और शाहजहाँ के दरबार में कविता सुनाया करते थे . इन्हें बादशाह ने पहले कविराय की और बाद में महा कविराय की उपाधि दी. इन्होंने संवत १६८८ में 'सुंदरश्रृंगार' नामक नायिका भेद का एक ग्रन्थ लिखा. कवि ने रचना की तिथि इस प्रकार दी है :--
संवत् सोरह सै बरस,बीते अठतर सीति.
कातिक सुदी सतमी गुरौ,रचे ग्रन्थ करी प्रीति .
इसके अतिरिक्त 'सिंहासनबतीसी' और 'बारहमासा' नाम की इनकी दो पुस्तकें और कही जाती हैं. यमक और अनुप्रास की ओर इनकी कुछ विशेष प्रवृति जान पड़ती है.