भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झूठो संसार सार यामे कछु है ही नाहीं / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | }} {{KKCatKavitt}} <poem> झूठो स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:36, 5 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
झूठो संसार सार यामे कछु है ही नाहीं,
मेरा ये मेरा करत, कौन यहाँ अपना है |
आया कर करार और बीती रैन हुआ भोर,
अब तो कर गौर,देख झूठा सा सपना है |
माया भरमाया भाया काया जली बहुतों की,
मर-मर के गये लोग करके कल्पना है |
कहता शिवदीन कहो वाणी से राम-राम,
चार दिन मुकाम यामें राम-राम जपना है |