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जगद्विनोद, प्रबोध चन्द्रोदय, हिम्मतबहादुर-विरुदावली
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१. जगद्विनोद         २. हिम्मत बहादुर विरदावली
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३. पद्माभरण        ४. जयसिंह विरदावली
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५. अलीजाह प्रकाश    ६. हितोपदेश
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ये बंद के रहने वाले तैलंग ब्राह्मण थे . इनके पिता का नाम मोहन भट्ट था .
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पदमाकर पन्ना के महाराज हिंदूपति के गुरु थे. कई राज-दरबारों में इनका बड़ा मान था. यद्द्यपी इनको मिश्र-बन्धुओं के नवरत्नों में स्थान नहीं मिला है, तथापि लक्षणों की सरलता और स्पष्टता तथा उदाहरणों की उपयुक्तता और विशाल काव्यत्व के कारण इनका स्थान रीतिकालीन कवियों में बड़े महत्व का है. पद्माकर के सम्बन्ध में शुक्लजी का मत है :-- “लाक्षणिक शब्दों के प्रयोग द्वारा कहीं कहीं ये मन की अव्यक्त भावना को ऐसा मूर्ति मान कर देते हैं कि सुनने वालों का हृदय आप ही आप हामी भरता है . यह लाक्षणिकता भी इनकी बड़ी विशेषता है.”
  
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पद्माकर ने वीर –रस की भी कविता की है , किन्तु उसमें उतने सफल नहीं हुए जितने श्रृंगार रस में.
  
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पद्माकर भट्ट

जन्म

1753

निधन: 1833


उपनाम पद्माकर जन्म स्थान सागर, मध्य प्रदेश

कृतियाँ

१. जगद्विनोद २. हिम्मत बहादुर विरदावली

३. पद्माभरण ४. जयसिंह विरदावली

५. अलीजाह प्रकाश ६. हितोपदेश

७. रामरसायन ८. प्रबोध पचासा

९.गंग-लहरी


विविध ये बंद के रहने वाले तैलंग ब्राह्मण थे . इनके पिता का नाम मोहन भट्ट था .

पदमाकर पन्ना के महाराज हिंदूपति के गुरु थे. कई राज-दरबारों में इनका बड़ा मान था. यद्द्यपी इनको मिश्र-बन्धुओं के नवरत्नों में स्थान नहीं मिला है, तथापि लक्षणों की सरलता और स्पष्टता तथा उदाहरणों की उपयुक्तता और विशाल काव्यत्व के कारण इनका स्थान रीतिकालीन कवियों में बड़े महत्व का है. पद्माकर के सम्बन्ध में शुक्लजी का मत है :-- “लाक्षणिक शब्दों के प्रयोग द्वारा कहीं कहीं ये मन की अव्यक्त भावना को ऐसा मूर्ति मान कर देते हैं कि सुनने वालों का हृदय आप ही आप हामी भरता है . यह लाक्षणिकता भी इनकी बड़ी विशेषता है.”

पद्माकर ने वीर –रस की भी कविता की है , किन्तु उसमें उतने सफल नहीं हुए जितने श्रृंगार रस में.

पुरस्कार

संपादन

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