भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिलकुल चाहिये / ‘शुजाअ’ खावर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=‘शुजाअ’ खावर }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख़्वाब इत...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
− | + | पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिलकुल चाहिये | |
− | + | बीच दरिया डूबना भी हो तो इक पुल चाहिये | |
− | + | फ़िक्र तो अपनी बहुत है बस तगज्ज़ुल चाहिये | |
− | + | नाला-ए-बुलबुल को गोया खंदा-ए-गुल चाहिये | |
− | + | शख्सियत में अपनी वो पहली सी गहराई नहीं | |
− | + | फिर तेरी जानिब से थोडा सा तगाफ़ुल चाहिये | |
− | + | जिनको क़ुदरत है तखैय्युल पर उन्हें दिखता नहीं | |
− | + | जिनकी ऑंखें ठीक हैं उनको तखैय्युल चाहिए | |
− | + | रोज़ हमदर्दी जताने के लिए आते हैं लोग | |
− | + | मौत के बाद अब हमें जीना न बिलकुल चाहिए | |
</poem> | </poem> |
13:05, 7 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिलकुल चाहिये
बीच दरिया डूबना भी हो तो इक पुल चाहिये
फ़िक्र तो अपनी बहुत है बस तगज्ज़ुल चाहिये
नाला-ए-बुलबुल को गोया खंदा-ए-गुल चाहिये
शख्सियत में अपनी वो पहली सी गहराई नहीं
फिर तेरी जानिब से थोडा सा तगाफ़ुल चाहिये
जिनको क़ुदरत है तखैय्युल पर उन्हें दिखता नहीं
जिनकी ऑंखें ठीक हैं उनको तखैय्युल चाहिए
रोज़ हमदर्दी जताने के लिए आते हैं लोग
मौत के बाद अब हमें जीना न बिलकुल चाहिए