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"पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिलकुल चाहिये / ‘शुजाअ’ खावर" के अवतरणों में अंतर

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ख़्वाब इतने हैं यही बेचा करें
 
और क्या इस शहर में धंधा करें
 
  
क्या ज़रा सी बात का शिकवा करें
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पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिलकुल चाहिये
शुक्रिये से उसको शर्मिंदा करें
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बीच दरिया डूबना भी हो तो इक पुल चाहिये
  
तू कि हमसे भी न बोले एक लफ़्ज़
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फ़िक्र तो अपनी बहुत है बस तगज्ज़ुल चाहिये
और हम सबसे तिरा चर्चा करें
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नाला-ए-बुलबुल को गोया खंदा-ए-गुल चाहिये
  
सबके चेह्रे एक जैसे हैं तो क्या
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शख्सियत में अपनी वो पहली सी गहराई नहीं
आप मेरे ग़म का अंदाज़ा करें
+
फिर तेरी जानिब से थोडा सा तगाफ़ुल चाहिये
  
ख़्वाब उधर है और हक़ीक़त है इधर
+
जिनको क़ुदरत है तखैय्युल पर उन्हें दिखता नहीं
बीच में हम फँस गये हैं क्या करें
+
जिनकी ऑंखें ठीक हैं उनको तखैय्युल चाहिए
  
हर कोई बैठा है लफ़्ज़ों पर सवार
+
रोज़ हमदर्दी जताने के लिए आते हैं लोग
हम ही क्यों मफ़हूम का पीछा करें
+
मौत के बाद अब हमें जीना न बिलकुल चाहिए
 
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13:05, 7 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण


पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिलकुल चाहिये
बीच दरिया डूबना भी हो तो इक पुल चाहिये

फ़िक्र तो अपनी बहुत है बस तगज्ज़ुल चाहिये
नाला-ए-बुलबुल को गोया खंदा-ए-गुल चाहिये

शख्सियत में अपनी वो पहली सी गहराई नहीं
फिर तेरी जानिब से थोडा सा तगाफ़ुल चाहिये

जिनको क़ुदरत है तखैय्युल पर उन्हें दिखता नहीं
जिनकी ऑंखें ठीक हैं उनको तखैय्युल चाहिए

रोज़ हमदर्दी जताने के लिए आते हैं लोग
मौत के बाद अब हमें जीना न बिलकुल चाहिए