भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"व्याकुल यह बादल की साँझ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |संग्रह=निर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
[[Category:बांगला]]
 
[[Category:बांगला]]
 
<poem>
 
<poem>
''''''
+
'''आमार दिन फुरालो व्याकुल बादल साँझे'''
 +
 
 +
व्याकुल यह बादल की साँझ
 +
दिन बीता मेरा, बीता ये दिन
 +
मेघों के बीच सघन
 +
मेघों के बीच ।
 +
बहता जल छलछल बन की है छाया
 +
हृदय के किनारे से आकर टकराया ।
 +
गगन गगन क्षण क्षण में
 +
बजता मृदंग कितना गम्भीर ।
 +
अनजाना दूर का मानुष वह कौन
 +
आया है पास आया है पास ।
 +
तिमिर तले नीरव वह खड़ा हुआ छुप छुप
 +
छाती से झूल रही माला है चुप-चुप,
 +
विरह व्यथा की माला,
 +
जिसमें है अमृतमय गोपन मिलन ।
 +
खोल रहा वह मन के द्वार ।
 +
चरण-ध्वनि उसकी ज्यों लगती है पहचानी ।
 +
उसकी इस सज्जा से मानी है हार ।
  
  
 
'''मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल'''  
 
'''मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल'''  
  
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत  54 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)
+
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत  29 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)
 
</poem>
 
</poem>

23:29, 18 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » संग्रह: निरुपमा, करना मुझको क्षमा‍
»  व्याकुल यह बादल की साँझ

आमार दिन फुरालो व्याकुल बादल साँझे

व्याकुल यह बादल की साँझ
दिन बीता मेरा, बीता ये दिन
मेघों के बीच सघन
मेघों के बीच ।
बहता जल छलछल बन की है छाया
हृदय के किनारे से आकर टकराया ।
गगन गगन क्षण क्षण में
बजता मृदंग कितना गम्भीर ।
अनजाना दूर का मानुष वह कौन
आया है पास आया है पास ।
तिमिर तले नीरव वह खड़ा हुआ छुप छुप
छाती से झूल रही माला है चुप-चुप,
विरह व्यथा की माला,
जिसमें है अमृतमय गोपन मिलन ।
खोल रहा वह मन के द्वार ।
चरण-ध्वनि उसकी ज्यों लगती है पहचानी ।
उसकी इस सज्जा से मानी है हार ।


मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 29 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)