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"तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ, स्वीकार लो।
 
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मन के गोपन में
 
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मुझको उनके लिए फिर लौटा न देना
 
मुझको उनके लिए फिर लौटा न देना
अग्‍िन में कर दो उनका दहन।
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अग्नि में कर दो उनका दहन।

16:33, 20 अक्टूबर 2012 का अवतरण

तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ, स्वीकार लो। इस बार नहीं तुम लौटो नाथ- हृदय चुराकर ही मानो।

गुजरे जो दिन बिना तुम्‍हारे वे दिन वापस नहीं चाहिए खाक में मिल जाऍं वे अब तुम्‍हारी ज्‍योति से जीवन ज्‍योतित कर देखो मैं जागूँ निरंतर।

किस आवेश में, किसकी बात में आकर भटकता रहा मैं जहॉं-तहॉं- पथ-प्रांतर में, इस बार सीने से मुख मेरा लगा तुम बोलो आप्‍तवचन।

कितना कलुष, कितना कपट अभी भी हैं जो शेष कहीं मन के गोपन में मुझको उनके लिए फिर लौटा न देना अग्नि में कर दो उनका दहन।