भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अलसुबह ही मेरा घर / सत्यनारायण सोनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>रात फिर आंधी आई घर भर गया सारा कोना-कोना अट गया धूल से। बच्चों की…) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | < | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=सत्यनारायण सोनी | ||
+ | |संग्रह=कवि होने की ज़िद में / सत्यनारायण सोनी | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
+ | रात फिर आंधी आई | ||
घर भर गया सारा | घर भर गया सारा | ||
− | कोना-कोना अट गया धूल | + | कोना-कोना अट गया धूल से । |
− | बच्चों की | + | |
+ | बच्चों की माँ | ||
आज भी भन्नाई कुदरत पर- | आज भी भन्नाई कुदरत पर- | ||
'आग लागै रै ईं आंधी गै!' | 'आग लागै रै ईं आंधी गै!' | ||
+ | |||
अलसुबह ही | अलसुबह ही | ||
बेटी लगा रही है झाड़ू | बेटी लगा रही है झाड़ू | ||
और पत्नी मार रही है पोंछा | और पत्नी मार रही है पोंछा | ||
− | पहले जिसने पीट-पीट खाटों को | + | पहले जिसने पीट-पीट खाटों को झड़काया । |
+ | |||
मैं झड़क चुकी खाट पर आराम से लेटा | मैं झड़क चुकी खाट पर आराम से लेटा | ||
इस इंतजार में कि | इस इंतजार में कि | ||
घर की धूल निकल जाए तो | घर की धूल निकल जाए तो | ||
− | घुस | + | घुस जाऊँ नहानघर में |
− | और अपने बदन की भी | + | और अपने बदन की भी निकालूँ... |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
+ | बाँच रहा हूँ चँद्रकांत देवताले की कविताएँ | ||
+ | बड़ा बेटा बाँच रहा अख़बार इत्मीनान से | ||
+ | और छोटा निकल गया है खेलने बाहर । | ||
</poem> | </poem> |
01:05, 22 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
रात फिर आंधी आई
घर भर गया सारा
कोना-कोना अट गया धूल से ।
बच्चों की माँ
आज भी भन्नाई कुदरत पर-
'आग लागै रै ईं आंधी गै!'
अलसुबह ही
बेटी लगा रही है झाड़ू
और पत्नी मार रही है पोंछा
पहले जिसने पीट-पीट खाटों को झड़काया ।
मैं झड़क चुकी खाट पर आराम से लेटा
इस इंतजार में कि
घर की धूल निकल जाए तो
घुस जाऊँ नहानघर में
और अपने बदन की भी निकालूँ...
बाँच रहा हूँ चँद्रकांत देवताले की कविताएँ
बड़ा बेटा बाँच रहा अख़बार इत्मीनान से
और छोटा निकल गया है खेलने बाहर ।