भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अभी न होगा मेरा अन्त / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) (' अभी न होगा मेरा अन्त अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:कविता]] | [[Category:कविता]] | ||
<poeM> | <poeM> | ||
+ | अभी न होगा मेरा अन्त | ||
+ | अभी-अभी ही तो आया है | ||
+ | मेरे वन में मृदुल वसन्त- | ||
+ | अभी न होगा मेरा अन्त | ||
+ | |||
हरे-हरे ये पात, | हरे-हरे ये पात, | ||
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! | डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! |
14:51, 26 अक्टूबर 2012 का अवतरण
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।