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राधा-सखी संवाद / सूरदास

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इहँई रहत कि और गाउँ कहूँ, मैं देखे नाहिं न कहू उनको ।
 
कहै नहीं समुझाइ बात यह मोहिं लगावति हौ तुम जिनकौं ॥