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"बचपन में इस दरख़्त पे कैसा सितम हुआ / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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06:38, 7 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण



बचपन में इस दरख़्त पे कैसा सितम हुआ
जो शाख़ इसकी माँ थी वहाँ से कलम हुआ

मुंसिफ हो या गवाह , मनायेंगे अपनी ख़ैर
गर फैसला अना से मिरी कुछ भी कम हुआ

इक रोशनी तड़प के ये कहती है बारहा
क्यूँ आसमाँ का नूर घटाओं में ज़म हुआ

जूठे हैं लब तिरे ये उसे कुछ ख़बर नहीं
जो बदनसीब शख़्स तुम्हारा ख़सम हुआ

यकलख्त आ के आज वो मुझसे लिपट गया
जो फासला दिलों में था अश्कों में ज़म हुआ