"याद आई पृथ्वी / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर
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लेता रहा आकाश हिलोरे । | लेता रहा आकाश हिलोरे । | ||
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मुझे साँस मिली | मुझे साँस मिली | ||
जॆसे आकाश मेरा पिता हो । | जॆसे आकाश मेरा पिता हो । | ||
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उसने मुझे छुआ । | उसने मुझे छुआ । | ||
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मेरी दिवंगत माँ | मेरी दिवंगत माँ | ||
जाने कब से निहार रही थी | जाने कब से निहार रही थी | ||
यह किस्सा । नहीं जानता | यह किस्सा । नहीं जानता | ||
− | मैं कब चटका | + | मैं कब चटका और अपने से दूर हो गया |
और बहुत करीब अपने पास आ गया । | और बहुत करीब अपने पास आ गया । | ||
जाने क्या गुनगुनाता रहा देर तक | जाने क्या गुनगुनाता रहा देर तक |
12:58, 19 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
मैं उठा और उठता चला गया
जैसे कि तूफान !
जा लगा उस सीने से
बेहद करीबी अपने सीने से
जो था ही नहीं, कहीं
मेरे वज़ूद सा ।
मैं शान्त हुआ और खो गया
हालाँकि था ही क्या खोने को पर खो गया
ठीक बहला दिए गए किसी बच्चे की जिद-सा ।
मैंने देखा आकाश मुझमें डूब गया था
पूरा का पूरा ।
मैं मारता रहा हाथ-पाँव
लेता रहा आकाश हिलोरे ।
मैं उठा और चढ़ बैठा आकाश के कंधों पर ।
मुझे साँस मिली
जॆसे आकाश मेरा पिता हो ।
मैंने याद किया
बहुत याद किया पृथ्वी को
जो गायब थी मेरे पैरों से ।
यूँ मिली ही कब थी वह ।
मैंने याद किया
महज याद करने के लिए
ऒर लूटता रहा सुख औपचारिकता का
और सताता रहा याद को, रुलाता रहा ।
कितना शैतान था न मैं !
बहुत प्यार से देखा मुझे याद ने
लाड़ उमड़ आया था उसका
उसने मुझे छुआ ।
सामने वाले वृक्ष पर बैठी
मेरी दिवंगत माँ
जाने कब से निहार रही थी
यह किस्सा । नहीं जानता
मैं कब चटका और अपने से दूर हो गया
और बहुत करीब अपने पास आ गया ।
जाने क्या गुनगुनाता रहा देर तक
बैठा अपनी टाट बिछी पृथ्वी की गोद में ।
तुम कहाँ हो पृथ्वी
कहाँ किस टहनी पर अटकी हो
वृक्ष की ! आओ और मेरे पाँवों को
जमीन दो ओ माँ ।