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"क्यूँ है ख़ामोश समंदर तुम्हें मा’लूम है क्या / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर
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+ | उसकी आँखें हैं समंदर तुम्हें मालूम है क्या |
00:12, 1 अप्रैल 2013 का अवतरण
ग़ज़ल
क्यूँ है ख़ामोश समंदर तुम्हें मालूम है क्या कितने तूफ़ान हैं भीतर तुम्हें मालूम है क्या
उससे मिलनाकी तमन्ना है अगर मिल जाए कौन लिखता है मुक़द्दर तुम्हें मालूम है क्या
दर्द कितना भी दो,आँसू नहीं आने वाले दिल मेरा हो गया पत्थर तुम्हें मालूम है क्या
एक जुमला वो जो कल तुम कहा था उसने ख़ून से रँग दिए ख़न्जर तुम्हें मालूम है क्या
डूब जाता है उन आँखों में उतरने वाला उसकी आँखें हैं समंदर तुम्हें मालूम है क्या