भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया / राहत इन्दौरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहत इन्दौरी }} Category:ग़ज़ल <poem> बढ़ ग...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:30, 9 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया
मेरे नक़्शे से कट गयी दुनिया '
तितलियों में समा गया मंज़र
मुट्ठियों में सिमट गयी दुनिया
अपने रस्ते बनाये खुद मैंने
मेरे रस्ते से हट गयी दुनिया
एक नागन का ज़हर है मुझमे
मुझको डस कर पलट गयी दुनिया
कितने खानों में बंट गए हम तुम
कितनी हिस्सों में बंट गयी दुनिया
जब भी दुनिया को छोड़ना चाहा
मुझसे आकर लिपट गयी दुनिया