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"रात भर सर्द हवा चलती रही / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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रात भर सर्द हवा चलती रही
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रात भर हमने अलाव तापा
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मैंने माजी से कई खुश्क सी शाखें काटीं
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तुमने भी गुजरे हुये लम्हों के पत्ते तोड़े
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मैंने जेबों से निकालीं सभी सूखीं नज़्में
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तुमने भी हाथों से मुरझाये हुये खत खोलें
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अपनी इन आंखों से मैंने कई मांजे तोड़े
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और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकी
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तुमने पलकों पे नामी सूख गयी थी, सो गिरा दी|
  
रात भर सर्द हवा चलती रही<br>
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रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हमको
रात भर हमने अलाव तापा<br>
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काट के दाल दिया जलाते अलावों मसं उसे
मैंने माजी से कई खुश्क सी शाखें काटीं<br>
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रात भर फून्कों से हर लोऊ को जगाये रखा
तुमने भी गुजरे हुये लम्हों के पत्ते तोड़े<br>
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और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रखा
मैंने जेबों से निकालीं सभी सूखीं नज़्में<br>
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तुमने भी हाथों से मुरझाये हुये खत खोलें<br>
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अपनी इन आंखों से मैंने कई मांजे तोड़े<br>
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और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकी<br>
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तुमने पलकों पे नामी सूख गयी थी, सो गिरा दी |<br><br>
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रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हमको<br>
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काट के दाल दिया जलाते अलावों मसं उसे<br>
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रात भर फून्कों से हर लोऊ को जगाये रखा<br>
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और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रखा<br>
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रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने |
 
रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने |

20:09, 11 अप्रैल 2013 का अवतरण

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रात भर सर्द हवा चलती रही
रात भर हमने अलाव तापा
मैंने माजी से कई खुश्क सी शाखें काटीं
तुमने भी गुजरे हुये लम्हों के पत्ते तोड़े
मैंने जेबों से निकालीं सभी सूखीं नज़्में
तुमने भी हाथों से मुरझाये हुये खत खोलें
अपनी इन आंखों से मैंने कई मांजे तोड़े
और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकी
तुमने पलकों पे नामी सूख गयी थी, सो गिरा दी|

रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हमको
काट के दाल दिया जलाते अलावों मसं उसे
रात भर फून्कों से हर लोऊ को जगाये रखा
और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रखा
रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने |