भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गया तो हुस्न न दीवार में न / ज़ाहिद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद'' }} {{KKCatGhazal}} <poem> ग...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद | + | |रचनाकार=अबुल मुजाहिद 'ज़ाहिद' |
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} |
11:24, 16 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
गया तो हुस्न न दीवार में न दर में था
वो एक शख़्स जो मेहमान मेरे घर में था
नजात धूप से मिलती तो किस तरह मिलती
मेरा सफ़र तो मियाँ दश्त-ए-बे-शजर में था
ग़म-ए-ज़माना की नागन ने डस लिया सब को
वही बचा जो तेरी ज़ुल्फ़ के असर में था
खुली जो आँख तो अफ़्सून-ए-ख़्वाब टूट गया
अभी अभी कोई चेहरा मेरी नज़र में था
न आई घर में कभी इक किरन भी सूरज की
अगरचे मेरा मकाँ वादी-ए-सहर में था
मिला न घर से निकल कर भी चैन ऐ 'ज़ाहिद'
खुली फ़ज़ा में वही ज़हर था जो घर में था