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"भीख मांगते उसी त्रिलोचन को देखा कल / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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भीख  मांगते  उसी  त्रिलोचन  को  देखा  कल
 
भीख  मांगते  उसी  त्रिलोचन  को  देखा  कल
 
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जिस को  समझे  था है  तो  है  यह फ़ौलादी
जिस को  समझे  था है  तो  है  यह फ़ौलादी
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ठेस-सी  लगी मुझे, क्योंकि  यह मन था आदी
 
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नहीं;  झेल  जाता  श्रद्धा  की  चोट  अचंचल,
 
नहीं;  झेल  जाता  श्रद्धा  की  चोट  अचंचल,
 
 
नहीं  संभाल  सका  अपने को ।  जाकर  पूछा
 
नहीं  संभाल  सका  अपने को ।  जाकर  पूछा
 
 
'भिक्षा से क्या मिलता है। 'जीवन।' 'क्या इसको
 
'भिक्षा से क्या मिलता है। 'जीवन।' 'क्या इसको
 
 
अच्छा  आप  समझते  हैं ।' 'दुनिया में जिसको
 
अच्छा  आप  समझते  हैं ।' 'दुनिया में जिसको
 
 
अच्छा  नहीं    समझते  हैं  करते  हैं,  छूछा
 
अच्छा  नहीं    समझते  हैं  करते  हैं,  छूछा
 
 
पेट  काम  तो  नहीं  करेगा ।' 'मुझे  आप से
 
पेट  काम  तो  नहीं  करेगा ।' 'मुझे  आप से
 
 
ऎसी  आशा  न  थी ।' 'आप ही कहें, क्या करूं,
 
ऎसी  आशा  न  थी ।' 'आप ही कहें, क्या करूं,
 
 
खाली  पेट  भरूं, कुछ  काम  करूं कि चुप मरूं,
 
खाली  पेट  भरूं, कुछ  काम  करूं कि चुप मरूं,
 
 
क्या  अच्छा  है ।' जीवन  जीवन  है  प्रताप से,
 
क्या  अच्छा  है ।' जीवन  जीवन  है  प्रताप से,
 
 
स्वाभिमान  ज्योतिष्क  लोचनों  में  उतरा  था,
 
स्वाभिमान  ज्योतिष्क  लोचनों  में  उतरा  था,
 
 
यह  मनुष्य  था, इतने  पर  भी नहीं मरा था ।
 
यह  मनुष्य  था, इतने  पर  भी नहीं मरा था ।
  
  
 
''('उस जनपद का कवि हूं' नामक संग्रह से )''
 
''('उस जनपद का कवि हूं' नामक संग्रह से )''

13:14, 17 अप्रैल 2013 का अवतरण


भीख मांगते उसी त्रिलोचन को देखा कल
जिस को समझे था है तो है यह फ़ौलादी
ठेस-सी लगी मुझे, क्योंकि यह मन था आदी
नहीं; झेल जाता श्रद्धा की चोट अचंचल,
नहीं संभाल सका अपने को । जाकर पूछा
'भिक्षा से क्या मिलता है। 'जीवन।' 'क्या इसको
अच्छा आप समझते हैं ।' 'दुनिया में जिसको
अच्छा नहीं समझते हैं करते हैं, छूछा
पेट काम तो नहीं करेगा ।' 'मुझे आप से
ऎसी आशा न थी ।' 'आप ही कहें, क्या करूं,
खाली पेट भरूं, कुछ काम करूं कि चुप मरूं,
क्या अच्छा है ।' जीवन जीवन है प्रताप से,
स्वाभिमान ज्योतिष्क लोचनों में उतरा था,
यह मनुष्य था, इतने पर भी नहीं मरा था ।


('उस जनपद का कवि हूं' नामक संग्रह से )