भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उमीदे-मर्ग कब तक / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी | |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatNazm}} | ||
<poem> | <poem> | ||
उमीदे-मर्ग कब तक | उमीदे-मर्ग कब तक |
14:41, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण
उमीदे-मर्ग कब तक
ज़िन्दगी का दर्दे-सर कब तक
ये माना सब्र करते हैं महब्बत में
मगर कब तक
दयारे दोस्त हद होती है
यूँ भी दिल बहलने की
न याद आयें ग़रीबों को तेरे दीवारो-दर कब तक
यॅ तदबीरें भी तक़दीरे-
महब्बबत बन नहीं सकतीं
किसी को हिज्र में भूलें रहेंगे हम मगर कब तक
इनायत1 की करम की लुत्फ़ की
आख़िर कोई हद है
कोई करता रहेगा चारा-ए-जख़्मे ज़िगर2 कब तक
किसी का हुस्नर रूसवा
हो गया पर्दे ही पर्दे में
न लाये रंग आख़िरकार तासीरे-
नज़र कब तक
1- कृपा, 2- जिगर के घाव का उपचार