भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कहीं पर ख़ुश्बूएँ बिखरीं, कहीं तरतीब उजालों की / पवन कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन कुमार }} Category:ग़ज़ल <poem> कहीं पर ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=पवन कुमार | + | |रचनाकार=पवन कुमार |
+ | |संग्रह=वाबस्ता / पवन कुमार | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
कहीं पर ख़ुश्बूएँ बिखरीं, कहीं तरतीब उजालों की | कहीं पर ख़ुश्बूएँ बिखरीं, कहीं तरतीब उजालों की | ||
बड़ी पुरकैफ़ हैं राहें तेरे ख़्वाबों ख़यालों की | बड़ी पुरकैफ़ हैं राहें तेरे ख़्वाबों ख़यालों की |
08:16, 27 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
कहीं पर ख़ुश्बूएँ बिखरीं, कहीं तरतीब उजालों की
बड़ी पुरकैफ़ हैं राहें तेरे ख़्वाबों ख़यालों की
पड़े रहते हैं कोने में लपेटे गर्द की चादर
हमारी जिंदगी तस्वीर है शेरी रिसालों की
उसी ने तीरगी से तंग आकर ख़ुदकुशी कर ली
हमेशा भीख देता था जो हम सबको उजालों की
किया यूं था कि हमने दिल के थोड़े राज खोले थे
हुआ ये है झड़ी सी लग गई हम पर सवालों की
वहाँ फिर किस तरह लड़ते हम आपस में भला यारों
जहाँ मस्जिद से होकर राह जाती है शिवालों की
तुम्हारे नाम से ही दिल की दुनिया जगमगाती है
हमें ख़्वाहिश कहाँ हैं चांद सूरज के उजालों की