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"तुम्हारी तरह / पवन कुमार" के अवतरणों में अंतर
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08:39, 27 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
हवा जो
छू के
गुजरती है
मुझे
उसमें खुश्बू बसी है
तुम्हारी तरह।
ये नदिया जो बहती है
इसमें
इक सादगी है
तुम्हारी तरह।
रंग धानी है हरसू
बिखरा हुआ
इस जमीं का है
ये
पैरहन है
तुम्हारी तरह।
बे मकसद हैं
राहें यहाँ की सभी
मगर
चलती जातीं हैं
तुम्हारी तरह।
दिन को लोरी सुना के
सुलाते हुए
रात जाग जाती है बस
तुम्हारी तरह।
और भी बहुत कुछ है
तुम्हारी तरह
किसी ने तो खींचे हैं
तुम्हारे ही नक़्श
इन
फिज़ाओं में।