भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चांद / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= उचटी हुई नींद / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

06:14, 16 मई 2013 के समय का अवतरण

हमारे प्रेम से पहले
था आकाश में चांद
मैंने देखा नहीं
जब देखा
दिखा नहीं ऐसा
दीख रहा है अब जैसा...!

चांद वही है
चांदनी भी वही है
बस देखने वालों में
हो गया हूं शामिल मैं
क्या सूझा मुझे
कि बिठा दिया तुमको
मैंने चांद पर!