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"उलटबांसी / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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06:46, 16 मई 2013 के समय का अवतरण

तुम सोती हो
घोड़े बेचकर
उन्हीं घोड़ों को लेकर मैं
निकलता हूं-
ढूंढऩे तुम्हें।
नींद में
फैली है कितनी जमीन
जब ढूढ़ते-ढूढ़ते हार जाता हूं,
उचट जाती है ।
मैं जाग कर सबसे पहले
घोड़ों को पिलाता हूं पानी!