भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भूख है तो सब्र कर / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार | |रचनाकार=दुष्यंत कुमार | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=साये में धूप / दुष्यन्त कुमार |
− | }} | + | }} |
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ <br> | भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ <br> |
19:29, 29 जून 2008 का अवतरण
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ|
मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह
ज़िंदगी ने जब छुआ फ़ासला रखकर छुआ|
गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ|
क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुआं|
आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को
आप के भी खून का रंग हो गया है सांवला|
इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुआं|
दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ|
इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियां|