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"भिक्षुक / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | दो टूक कलेजे के करता पछताता | + | वह आता-- |
− | पथ पर आता। | + | दो टूक कलेजे के करता पछताता |
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− | पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, | + | पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, |
− | चल रहा लकुटिया टेक, | + | चल रहा लकुटिया टेक, |
− | मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को | + | मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को |
− | मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-- | + | मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-- |
− | दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। | + | दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। |
− | साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये, | + | साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये, |
− | बायें से वे मलते हुए पेट को चलते, | + | बायें से वे मलते हुए पेट को चलते, |
− | और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये। | + | और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये। |
− | भूख से सूख ओठ जब जाते | + | भूख से सूख ओठ जब जाते |
− | दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?-- | + | दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?-- |
− | घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। | + | घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। |
− | चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, | + | चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, |
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए! | और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए! |
17:27, 2 जून 2013 का अवतरण
वह आता--
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता--
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?--
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!