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दोष / कविता वाचक्नवी
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00:30, 10 जून 2013
वर्तनी सुधार
<poem>
'''दोष'''
हे सूर्यदेव!
कुंति
कुन्ती
के
युगों से भीगे
झिलमिलाती झील-से
आँचल पर
शैवाल
अंधेरा
अन्धेरा
गुपचुप
खुभा
गुभा
है
,
चीर,
तल के जमाव तक
सुनहली धूप
और पीढ़ियाँ समझती हैं
किरन
किरण
-पुत्र तुम्हारा
जल में बहा दिया मैंने।
</poem>
Kvachaknavee
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