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"सरमाएदारी / मजाज़ लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है,<br>
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कलेजा  फुक  रहा  है  और  जबाँ  कहने से आरी है,
यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहकान का खरमन है<br>
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बताऊँ  क्या  तुम्हें  क्या  चीज  यह  सरमाएदारी  है,
यह  अपने  हाथ  में  तहजीब  का  फानूस  लेती  है,<br>
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मगर  मजदूर  के  तन  से  लहू  तक  चूस लेती  है<br>
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यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है,
यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है,<br>
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यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहकान का खरमन है
वबा से बढकर मुहलक, मौत से बढकर भयानक है।<br>
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न  देखें  हैं  बुरे  इसने,  न  परखे  हैं  भले  इसने,<br>
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यह  अपने  हाथ  में  तहजीब  का  फानूस  लेती  है,
शिकंजों  में  जकड  कर  घोंट  डाले  है  गले  इसने।<br>
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मगर  मजदूर  के  तन  से  लहू  तक  चूस लेती  है
कहीं यह खूँ से फरदे माल  व  जर तहरीर करती है,<br>
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कहीं यह हड्डियाँ चुन कर महल तामीर करती है।<br>
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यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है,
गरीबों  का  मुकद्दस  खून  पी-पी कर  बहकती  है<br>
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वबा से बढकर मुहलक, मौत से बढकर भयानक है।
महल  में  नाचती  है  रक्सगाहों  में  थिरकती  है।<br>
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जिधर  चलती  है  बर्बादी  के  सामां  साथ  चलते हैं,<br>
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न  देखें  हैं  बुरे  इसने,  न  परखे  हैं  भले  इसने,
नहूसत  हमसफर  होती  है  शैतान साथ  चलते  हैं।<br>
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शिकंजों  में  जकड  कर  घोंट  डाले  है  गले  इसने।
यह  अक्सर  टूटकर  मासूम  इंसानों  की  राहों  में,<br>
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खुदा  के  जमजमें  गाती  है,  छुपकर  खनकाहों  में।<br>
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कहीं यह खूँ से फरदे माल  व  जर तहरीर करती है,
यह  गैरत  छीन  लेती  है,  हिम्मत  छीन  लेती  है,<br>
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कहीं यह हड्डियाँ चुन कर महल तामीर करती है।
यह इंसानों से इंसानों की फतरत छीन लेती है।<br>
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गरीबों  का  मुकद्दस  खून  पी-पी कर  बहकती  है
मगर  बदमस्त  है  हर  हर  कदम पर  लडखडाती  है।<br>
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महल  में  नाचती  है  रक्सगाहों  में  थिरकती  है।
मुबारक  दोस्तों  लबरेज  है  इस  का  पैमाना,<br>
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मुबारक  दोस्तों  लबरेज  है  इस  का  पैमाना,
 
उठाओ  आँधियाँ  कमजोर  है  बुनियादे  काशाना।
 
उठाओ  आँधियाँ  कमजोर  है  बुनियादे  काशाना।

21:12, 24 जून 2013 के समय का अवतरण

कलेजा फुक रहा है और जबाँ कहने से आरी है,
बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज यह सरमाएदारी है,

यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है,
यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहकान का खरमन है

यह अपने हाथ में तहजीब का फानूस लेती है,
मगर मजदूर के तन से लहू तक चूस लेती है

यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है,
वबा से बढकर मुहलक, मौत से बढकर भयानक है।

न देखें हैं बुरे इसने, न परखे हैं भले इसने,
शिकंजों में जकड कर घोंट डाले है गले इसने।

कहीं यह खूँ से फरदे माल व जर तहरीर करती है,
कहीं यह हड्डियाँ चुन कर महल तामीर करती है।

गरीबों का मुकद्दस खून पी-पी कर बहकती है
महल में नाचती है रक्सगाहों में थिरकती है।

जिधर चलती है बर्बादी के सामां साथ चलते हैं,
नहूसत हमसफर होती है शैतान साथ चलते हैं।

यह अक्सर टूटकर मासूम इंसानों की राहों में,
खुदा के जमजमें गाती है, छुपकर खनकाहों में।

यह गैरत छीन लेती है, हिम्मत छीन लेती है,
यह इंसानों से इंसानों की फतरत छीन लेती है।

गरजती, गूँजती यह आज भी मैदाँ में आती है,
मगर बदमस्त है हर हर कदम पर लडखडाती है।

मुबारक दोस्तों लबरेज है इस का पैमाना,
उठाओ आँधियाँ कमजोर है बुनियादे काशाना।