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"वक्तव्य / महेश वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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और चुप रह गया था पिछले किसी मौसम। | और चुप रह गया था पिछले किसी मौसम। | ||
15:26, 26 जून 2013 के समय का अवतरण
अपने आप में बड़बड़ाते चलने वालों के पास
दूसरों के स्थगित वाक्य हैं।
टल गया जिनका कहा जाना कभी संकोच
कभी हड़बड़ी और अक्सर
समय पर न सूझ पाने के कारण।
आपके ठीक बगल से गुज़रते हुए
वे कहते हो सकते हैं
वह वाक्य जो आपसे कहना चाहता था
आपका परिचित
और चुप रह गया था पिछले किसी मौसम।
वे यूँ ही याद रखने को दुहरा रहे हों
किसी दूसरे के हिस्से का वाक्य जिसे
आगे किसी जगह पहुँचाना है।
बाज़ दफा जब वे चुपचाप गुज़र जाएँ
आपके पास से सोचते कोई बात -
वे सुन रहे होते हैं कान देकर आपके भीतर गूँजते
आपके अनकहे वाक्य।