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"फेसबुक पर स्त्री / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर
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09:54, 28 जून 2013 के समय का अवतरण
कुछ ने संस्कृति के लिए खतरा बताया
कुछ के मुँह में भर आया पानी
कुछ ने बेहतर कहा तो कुछ ने सिर-दर्द
कुछ हँसे - इनके भी विचार ?
कुछ सपने देखने लगे कुछ दिखाने लगे
कुछ के हिसाब से प्रचार था
कुछ के विचार
कुछ दबी जुबान व्यभिचार भी कह रहे थे
हैरान थी स्त्री
इक्कीसवीं सदी के पुरुषों की मानसिकता जानकर
देह से दिमाग मादा से मनुष्य की यात्रा में
नहीं है पुरुष आज भी उसके साथ
कुछ को उसने फेसबुक से हटा दिया
हटने वाले कुछ झल्लाए
कुछ इल्जाम लगाए
कुछ चिल्लाए-एक औरत की ये मजाल!
स्त्री ने भी नही मानी हार
सोच लिया उसने
बदल कर रहेगी वह
फेसबुक की स्त्री के बारे में
पूर्वाग्रहियों के विचार|