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"बीजगणित-सी शाम / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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अंकगणित-सी सुबह है मेरी
 
अंकगणित-सी सुबह है मेरी
 
 
बीजगणित-सी शाम
 
बीजगणित-सी शाम
 
 
रेखाओं में खिंची हुई है
 
रेखाओं में खिंची हुई है
 
 
मेरी उम्र तमाम।
 
मेरी उम्र तमाम।
 
  
 
भोर-किरण ने दिया गुणनफल
 
भोर-किरण ने दिया गुणनफल
 
 
दुख का, सुख का भाग
 
दुख का, सुख का भाग
 
 
जोड़ दिए आहों में आँसू
 
जोड़ दिए आहों में आँसू
 
 
घटा प्रीत का फाग
 
घटा प्रीत का फाग
 
 
प्रश्नचिह्न ही मिले सदा से
 
प्रश्नचिह्न ही मिले सदा से
 
 
मिला न पूर्ण विराम।
 
मिला न पूर्ण विराम।
 
  
 
जन्म-मरण के 'ब्रैकिट' में
 
जन्म-मरण के 'ब्रैकिट' में
 
 
यह हुई ज़िंदगी क़ैद
 
यह हुई ज़िंदगी क़ैद
 
 
ब्रैकिट के ही साथ खुल गए
 
ब्रैकिट के ही साथ खुल गए
 
 
इस जीवन के भेद
 
इस जीवन के भेद
 
 
नफ़ी-नफ़ी सब जमा हो रहे
 
नफ़ी-नफ़ी सब जमा हो रहे
 
 
आँसू आठों याम।
 
आँसू आठों याम।
 
  
 
आँसू, आह, अभावों की ही
 
आँसू, आह, अभावों की ही
 
 
ये रेखाएँ तीन
 
ये रेखाएँ तीन
 
 
खींच रही हैं त्रिभुज ज़िंदगी का
 
खींच रही हैं त्रिभुज ज़िंदगी का
 
 
होकर ग़मगीन
 
होकर ग़मगीन
 
 
अब तक तो ऐसे बीती है
 
अब तक तो ऐसे बीती है
 
 
आगे जाने राम।
 
आगे जाने राम।
  
 
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
 
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''

09:31, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

अंकगणित-सी सुबह है मेरी
बीजगणित-सी शाम
रेखाओं में खिंची हुई है
मेरी उम्र तमाम।

भोर-किरण ने दिया गुणनफल
दुख का, सुख का भाग
जोड़ दिए आहों में आँसू
घटा प्रीत का फाग
प्रश्नचिह्न ही मिले सदा से
मिला न पूर्ण विराम।

जन्म-मरण के 'ब्रैकिट' में
यह हुई ज़िंदगी क़ैद
ब्रैकिट के ही साथ खुल गए
इस जीवन के भेद
नफ़ी-नफ़ी सब जमा हो रहे
आँसू आठों याम।

आँसू, आह, अभावों की ही
ये रेखाएँ तीन
खींच रही हैं त्रिभुज ज़िंदगी का
होकर ग़मगीन
अब तक तो ऐसे बीती है
आगे जाने राम।

-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।