भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक नाम अधरों पर आया / कन्हैयालाल नंदन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
 
|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
 
}}  
 
}}  
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
एक नाम अधरों पर आया,
 +
अंग-अंग चंदन वन हो गया.
  
 +
बोल है कि वेद की ऋचायें
 +
सांसों में सूरज उग आयें
 +
आखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे
 +
मन सारा नील गगन हो गया.
  
एक नाम अधरों पर आया,<br>
+
गंध गुंथी बाहों का घेरा
अंग-अंग चंदन वन हो गया.<br><br>
+
जैसे मधुमास का सवेरा
 +
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी
 +
पूजा का एक जतन हो गया.
  
बोल है कि वेद की ऋचायें<br>
+
पानी पर खीचकर लकीरें
सांसों में सूरज उग आयें<br>
+
काट नहीं सकते जंजीरें
आखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे<br>
+
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं
मन सारा नील गगन हो गया.<br><br>
+
अग्निबिंदु और सघन हो गया.
  
गंध गुंथी बाहों का घेरा<br>
+
एक नाम अधरों पर आया,
जैसे मधुमास का सवेरा<br>
+
अंग-अंग चंदन वन हो गया.
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी<br>
+
पूजा का एक जतन हो गया.<br><br>
+
 
+
पानी पर खीचकर लकीरें<br>
+
काट नहीं सकते जंजीरें<br>
+
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं<br>
+
अग्निबिंदु और सघन हो गया.<br><br>
+
 
+
एक नाम अधरों पर आया,<br>
+
अंग-अंग चंदन वन हो गया.<br><br>
+

09:55, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया.

बोल है कि वेद की ऋचायें
सांसों में सूरज उग आयें
आखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे
मन सारा नील गगन हो गया.

गंध गुंथी बाहों का घेरा
जैसे मधुमास का सवेरा
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी
पूजा का एक जतन हो गया.

पानी पर खीचकर लकीरें
काट नहीं सकते जंजीरें
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं
अग्निबिंदु और सघन हो गया.

एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया.