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"ज़िन्दगी / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
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दुख ने तो सीख लिया आगे-आगे बढ़ना ही | दुख ने तो सीख लिया आगे-आगे बढ़ना ही | ||
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और सुख सीख रहे पीछे-पीछे हटना | और सुख सीख रहे पीछे-पीछे हटना | ||
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सपनों ने सीख लिया टूटने का ढंग और | सपनों ने सीख लिया टूटने का ढंग और | ||
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सीख लिया आँसुओं ने आँखों में सिमटना | सीख लिया आँसुओं ने आँखों में सिमटना | ||
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पलकों ने पल-पल चुभने की बात सीखी | पलकों ने पल-पल चुभने की बात सीखी | ||
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बार-बार सीख लिया नींद ने उचटना | बार-बार सीख लिया नींद ने उचटना | ||
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दिन और रात की पटरियों पे कटती है | दिन और रात की पटरियों पे कटती है | ||
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ज़िन्दगी नहीं है, ये है रेल-दुर्घटना। | ज़िन्दगी नहीं है, ये है रेल-दुर्घटना। | ||
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10:29, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
दुख ने तो सीख लिया आगे-आगे बढ़ना ही
और सुख सीख रहे पीछे-पीछे हटना
सपनों ने सीख लिया टूटने का ढंग और
सीख लिया आँसुओं ने आँखों में सिमटना
पलकों ने पल-पल चुभने की बात सीखी
बार-बार सीख लिया नींद ने उचटना
दिन और रात की पटरियों पे कटती है
ज़िन्दगी नहीं है, ये है रेल-दुर्घटना।
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।