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"आदमी / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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तन-मन-प्रान, मिटे सबके गुमान
 
तन-मन-प्रान, मिटे सबके गुमान
 
 
एक जलते मकान के समान हुआ आदमी
 
एक जलते मकान के समान हुआ आदमी
  
 
छिन गये बान, गिरी हाथ से कमान
 
छिन गये बान, गिरी हाथ से कमान
 
 
एक टूटती कृपान का बयान हुआ आदमी
 
एक टूटती कृपान का बयान हुआ आदमी
  
 
भोर में थकान, फिर शोर में थकान
 
भोर में थकान, फिर शोर में थकान
 
 
पोर-पोर में थकान पे थकान हुआ आदमी
 
पोर-पोर में थकान पे थकान हुआ आदमी
  
 
दिन की उठान में था, उड़ता विमान
 
दिन की उठान में था, उड़ता विमान
 
 
हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी।
 
हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी।
 
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
 

10:36, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

तन-मन-प्रान, मिटे सबके गुमान
एक जलते मकान के समान हुआ आदमी

छिन गये बान, गिरी हाथ से कमान
एक टूटती कृपान का बयान हुआ आदमी

भोर में थकान, फिर शोर में थकान
पोर-पोर में थकान पे थकान हुआ आदमी

दिन की उठान में था, उड़ता विमान
हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी।