"धूप / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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हवा में मक्खन-सा घोलती है | हवा में मक्खन-सा घोलती है | ||
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नींद-भरी आलस की भोर का | नींद-भरी आलस की भोर का | ||
कुंज गदराया है | कुंज गदराया है | ||
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अभी अनजान मानो | अभी अनजान मानो | ||
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नावें उछलती हैं लहरों में बादलों के | नावें उछलती हैं लहरों में बादलों के | ||
हलकी हलकी मगन मगन | हलकी हलकी मगन मगन | ||
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बेमानी तानें-सी आप ही आप गुनगुनाता है | बेमानी तानें-सी आप ही आप गुनगुनाता है | ||
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चुंबन की मीठी पुचकारियाँ | चुंबन की मीठी पुचकारियाँ | ||
खिला रहीं कलियों को फूलों को हँसा रहीं | खिला रहीं कलियों को फूलों को हँसा रहीं | ||
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घाँसों को गुदगुदियों न्हिला रहीं | घाँसों को गुदगुदियों न्हिला रहीं | ||
− | + | नाच हैं खिल् खिल् खिल् | |
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− | नाच हैं खिल् खिल् खिल् | + | |
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सुगंधियाँ | सुगंधियाँ | ||
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क्यों न उसाँसें भरे | क्यों न उसाँसें भरे | ||
धरती का हिया | धरती का हिया | ||
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धूप की चुस्कियाँ | धूप की चुस्कियाँ | ||
पिये जाय, आँख मीच, सोनीली माटी | पिये जाय, आँख मीच, सोनीली माटी | ||
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कन्-कन् जिये जाय | कन्-कन् जिये जाय | ||
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थप्-थप् केले के पातों पर हातों से | थप्-थप् केले के पातों पर हातों से | ||
हाथ् दिये जाय | हाथ् दिये जाय | ||
थप थप्... | थप थप्... |
14:15, 1 जुलाई 2013 का अवतरण
धूप थपेड़े मारती है थप्-थप्
केले के हातों से पातों से
केले के थंबों पर
खसर-खसर एक चिकनाहट
हवा में मक्खन-सा घोलती है
नींद-भरी आलस की भोर का
कुंज गदराया है
यौवन के सपनों से
अभी अनजान मानो
नावें उछलती हैं लहरों में बादलों के
हलकी हलकी मगन मगन
कि सीटियाँ-सी व्योम बजाता है चारों ओर
बेमानी तानें-सी आप ही आप गुनगुनाता है
चुंबन की मीठी पुचकारियाँ
खिला रहीं कलियों को फूलों को हँसा रहीं
घाँसों को गुदगुदियों न्हिला रहीं
नाच हैं खिल् खिल् खिल्
कुसुमों-से चरनों का लोच लिये
थिरक रही हैं
भीनी भीनी
सुगंधियाँ
क्यों न उसाँसें भरे
धरती का हिया
धूप की चुस्कियाँ
पिये जाय, आँख मीच, सोनीली माटी
कन्-कन् जिये जाय
थप्-थप् केले के पातों पर हातों से
हाथ् दिये जाय
थप थप्...