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"चुनाव / कन्हैयालाल नंदन" के अवतरणों में अंतर

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कोई फर्क नहीं पड़ता<br>
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कि वह अविचल खड़ा होकर बिखर जाये<br>
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कि वह अविचल खड़ा होकर बिखर जाये
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या शिखर पर चढ़ते-चढ़ते बिखरे-
टुकड़े-टुकड़े हो जाये।<br><br>
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टुकड़े-टुकड़े हो जाये।

16:56, 4 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

 
पहाड़ी के चारों तरफ
जतन से बिछाई हुई सुरंगों पर
जब लगा दिया गया हो पलीता
तो शिखर पर तनहा चढ़ते हुए इंसान को
कोई फर्क नहीं पड़ता
कि वह हारा या जीता।

उसे पता है कि
वह भागेगा तब भी
टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा
और अविचल होने पर भी
तिनके की तरह बिखर जायेगा
उसे करना होता है
सिर्फ चुनाव
कि वह अविचल खड़ा होकर बिखर जाये
या शिखर पर चढ़ते-चढ़ते बिखरे-
टुकड़े-टुकड़े हो जाये।