भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बतूता का जूता / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
तब सबसे पहले
 
तब सबसे पहले
 
वही मारा गया।
 
वही मारा गया।
 
  
 
इब्नबतूता पहन के जूता
 
इब्नबतूता पहन के जूता
पंक्ति 23: पंक्ति 22:
 
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
 
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
 
घुस गई थोड़ी कान में
 
घुस गई थोड़ी कान में
 
  
 
कभी नाक को, कभी कान को
 
कभी नाक को, कभी कान को
पंक्ति 29: पंक्ति 27:
 
इसी बीच में निकल पड़ा
 
इसी बीच में निकल पड़ा
 
उनके पैरों का जूता
 
उनके पैरों का जूता
 
  
 
उड़ते उड़ते जूता उनका
 
उड़ते उड़ते जूता उनका

20:58, 4 जुलाई 2013 का अवतरण

जब सब बोलते थे
वह चुप रहता था,
जब सब चलते थे
वह पीछे हो जाता था,
जब सब खाने पर टूटते थे
वह अलग बैठा टूँगता रहता था,
जब सब निढाल हो सो जाते थे
वह शून्य में टकटकी लगाए रहता था
लेकिन जब गोली चली
तब सबसे पहले
वही मारा गया।

इब्नबतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में

कभी नाक को, कभी कान को
मलते इब्नबतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता

उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुँचा जापान में
इब्नबतूता खड़े रह गये
मोची की दुकान में।