भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उनका हो जाता हूँ/ त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: चोट जभी लगती है तभी हँस देता हूँ देखनेवालों की आँखें उस हालत में देखा ही ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=त्रिलोचन | ||
+ | }} | ||
+ | |||
चोट जभी लगती है | चोट जभी लगती है | ||
+ | |||
तभी हँस देता हूँ | तभी हँस देता हूँ | ||
+ | |||
देखनेवालों की आँखें | देखनेवालों की आँखें | ||
+ | |||
उस हालत में | उस हालत में | ||
+ | |||
देखा ही करती हैं | देखा ही करती हैं | ||
+ | |||
आँसू नहीं लाती हैं | आँसू नहीं लाती हैं | ||
+ | |||
और | और | ||
+ | |||
जब पीड़ा बढ़ जाती है | जब पीड़ा बढ़ जाती है | ||
+ | |||
बेहिसाब | बेहिसाब | ||
+ | |||
तब | तब | ||
+ | |||
जाने-अनजाने लोगों में | जाने-अनजाने लोगों में | ||
+ | |||
जाता हूँ | जाता हूँ | ||
+ | |||
उनका हो जाता हूँ | उनका हो जाता हूँ | ||
+ | |||
हँसता हँसाता हूँ। | हँसता हँसाता हूँ। |
19:59, 21 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण
चोट जभी लगती है
तभी हँस देता हूँ
देखनेवालों की आँखें
उस हालत में
देखा ही करती हैं
आँसू नहीं लाती हैं
और
जब पीड़ा बढ़ जाती है
बेहिसाब
तब
जाने-अनजाने लोगों में
जाता हूँ
उनका हो जाता हूँ
हँसता हँसाता हूँ।