भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आता है याद मुझ को गुज़रा हुआ ज़माना / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना | आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना | ||
− | वो बाग़ की बहारें वो सब | + | वो बाग़ की बहारें, वो सब का चह-चहाना |
− | आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोसले की | + | आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की |
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना | अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना | ||
लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम | लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम | ||
− | शबनम के | + | शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना |
वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत | वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत | ||
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना | आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना | ||
</poem> | </poem> |
10:35, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें, वो सब का चह-चहाना
आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना
लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना
वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना