भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक लहर फैली अनन्त की / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन | |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKPrasiddhRachna}} | |
+ | {{KKCatNavgeet}} | ||
+ | <poem> | ||
सीधी है भाषा बसन्त की | सीधी है भाषा बसन्त की | ||
− | + | कभी आँख ने समझी | |
− | कभी | + | कभी कान ने पाई |
− | + | ||
− | कभी कान ने | + | |
− | + | ||
कभी रोम-रोम से | कभी रोम-रोम से | ||
− | + | प्राणों में भर आई | |
− | प्राणों में भर | + | और है कहानी दिगन्त की। |
− | + | ||
− | और है कहानी दिगन्त | + | |
− | + | ||
नीले आकाश में | नीले आकाश में | ||
− | + | नई ज्योति छा गई | |
− | + | ||
− | + | ||
कब से प्रतीक्षा थी | कब से प्रतीक्षा थी | ||
− | + | वही बात आ गई | |
− | वही बात आ | + | एक लहर फैली अनन्त की। |
− | + | </poem> | |
− | एक लहर फैली अनन्त | + |
10:51, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
सीधी है भाषा बसन्त की
कभी आँख ने समझी
कभी कान ने पाई
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आई
और है कहानी दिगन्त की।
नीले आकाश में
नई ज्योति छा गई
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गई
एक लहर फैली अनन्त की।