भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भारती वन्दना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
}}
 
}}
 +
{{KKPrasiddhRachna}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
भारति, जय, विजय करे<br>
+
<poem>
कनक - शस्य - कमल धरे!<br><br>
+
भारति, जय, विजय करे
 +
कनक-शस्य-कमल धरे!
  
लंका पदतल - शतदल<br>
+
लंका पदतल-शतदल
गर्जितोर्मि सागर - जल<br>
+
गर्जितोर्मि सागर-जल
धोता शुचि चरण - युगल<br>
+
धोता शुचि चरण-युगल
स्तव कर बहु अर्थ भरे!<br><br>
+
स्तव कर बहु अर्थ भरे!
  
तरु-तण वन - लता - वसन<br>
+
तरु-तण वन-लता-वसन
अंचल में खचित सुमन,<br>
+
अंचल में खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल - कण<br>
+
गंगा ज्योतिर्जल-कण
धवल - धार हार लगे!<br><br>
+
धवल-धार हार लगे!
  
मुकुट शुभ्र हिम - तुषार<br>
+
मुकुट शुभ्र हिम-तुषार
प्राण प्रणव ओंकार,<br>
+
प्राण प्रणव ओंकार
ध्वनित दिशाएँ उदार,<br>
+
ध्वनित दिशाएँ उदार
शतमुख - शतरव - मुखरे!<br><br>
+
शतमुख-शतरव-मुखरे!
 +
</poem>

11:49, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

भारति, जय, विजय करे
कनक-शस्य-कमल धरे!

लंका पदतल-शतदल
गर्जितोर्मि सागर-जल
धोता शुचि चरण-युगल
स्तव कर बहु अर्थ भरे!

तरु-तण वन-लता-वसन
अंचल में खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल-कण
धवल-धार हार लगे!

मुकुट शुभ्र हिम-तुषार
प्राण प्रणव ओंकार
ध्वनित दिशाएँ उदार
शतमुख-शतरव-मुखरे!