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"गांव का महाजन / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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वह समाज के त्रस्त क्षेत्र का मस्त महाजन, | वह समाज के त्रस्त क्षेत्र का मस्त महाजन, | ||
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नारिकेल-से सिर पर बांधे धर्म -मुरैठा, | नारिकेल-से सिर पर बांधे धर्म -मुरैठा, | ||
− | ग्राम -बधुटी की गौरी-गोदी पर बैठा | + | ग्राम -बधुटी की गौरी-गोदी पर बैठा! |
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नागमुखी पैत्रक संपत्ति की थैली खोले, | नागमुखी पैत्रक संपत्ति की थैली खोले, | ||
− | जीभ निकाले, बात बनाता करूणा घोले | + | जीभ निकाले, बात बनाता करूणा घोले! |
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ब्याज-स्तुति से बांट रहा है रूपया-पैसा, | ब्याज-स्तुति से बांट रहा है रूपया-पैसा, | ||
− | सदियों पहले से होता आया है ऐसा | + | सदियों पहले से होता आया है ऐसा! |
सूड़ लपेटे है कर्जे की ग्रामीणों को, | सूड़ लपेटे है कर्जे की ग्रामीणों को, | ||
− | मुक्ति अभी तक नहीं मिली है इन | + | मुक्ति अभी तक नहीं मिली है इन दीनों को! |
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+ | इन दीनों के ऋण का रोकड़-कांड बड़ा है, | ||
+ | अब भी किंतु अछूता शोषण-कांड पड़ा है। | ||
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12:04, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
वह समाज के त्रस्त क्षेत्र का मस्त महाजन,
गौरव के गोबर -गणेश सा मारे आसन!
नारिकेल-से सिर पर बांधे धर्म -मुरैठा,
ग्राम -बधुटी की गौरी-गोदी पर बैठा!
नागमुखी पैत्रक संपत्ति की थैली खोले,
जीभ निकाले, बात बनाता करूणा घोले!
ब्याज-स्तुति से बांट रहा है रूपया-पैसा,
सदियों पहले से होता आया है ऐसा!
सूड़ लपेटे है कर्जे की ग्रामीणों को,
मुक्ति अभी तक नहीं मिली है इन दीनों को!
इन दीनों के ऋण का रोकड़-कांड बड़ा है,
अब भी किंतु अछूता शोषण-कांड पड़ा है।