भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घन-जन / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल
 
|संग्रह=फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKPrasiddhRachna}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
घन गरजे जन गरजे
 
घन गरजे जन गरजे
 
 
बन्दी सागर को लख कातर
 
बन्दी सागर को लख कातर
 
 
एक रोष से
 
एक रोष से
 
 
घन गरजे जन गरजे
 
घन गरजे जन गरजे
 
 
क्षत-विक्षत लख हिमगिरी अन्तर
 
क्षत-विक्षत लख हिमगिरी अन्तर
 
 
एक रोष से
 
एक रोष से
 
 
घन गरजे जन गरजे
 
घन गरजे जन गरजे
 
 
क्षिति की छाती को लख जर्जर
 
क्षिति की छाती को लख जर्जर
 
 
एक शोध से
 
एक शोध से
 
 
घन गरजे जन गरजे
 
घन गरजे जन गरजे
 
 
देख नाश का ताण्डव बर्बर
 
देख नाश का ताण्डव बर्बर
 
 
एक बोध से
 
एक बोध से
 
+
घन गरजे जन गरजे।
घन गरजे जन गरजे
+

12:16, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

घन गरजे जन गरजे
बन्दी सागर को लख कातर
एक रोष से
घन गरजे जन गरजे
क्षत-विक्षत लख हिमगिरी अन्तर
एक रोष से
घन गरजे जन गरजे
क्षिति की छाती को लख जर्जर
एक शोध से
घन गरजे जन गरजे
देख नाश का ताण्डव बर्बर
एक बोध से
घन गरजे जन गरजे।