"सरफ़रोशी की तमन्ना / बिस्मिल अज़ीमाबादी" के अवतरणों में अंतर
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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | ||
− | + | वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान, | |
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हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है | हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है | ||
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खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद, | खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद, | ||
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+ | आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है | ||
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | ||
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है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर, | है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर, | ||
− | और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर | + | और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर |
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, | खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, | ||
− | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | + | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है |
− | हाथ जिन में हो | + | हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से, |
− | सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से | + | सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से |
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है, | और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है, | ||
− | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | + | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है |
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न, | हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न, | ||
− | जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम | + | जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम |
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है, | जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है, | ||
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | ||
− | यूँ खड़ा | + | यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार, |
− | क्या तमन्ना-ए-शहादत भी | + | क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है |
− | दिल में तूफ़ानों | + | दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब, |
− | होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज | + | होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज |
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, | दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, | ||
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तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है, | तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है, | ||
− | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है | + | सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है |
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19:10, 10 जुलाई 2013 का अवतरण
अक्सर लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल जी की रचना बताते हैं लेकिन वास्तव में ये अज़ीमाबाद (अब पटना) के मशहूर शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैं और रामप्रसाद बिस्मिल ने उनका शे'र फांसी के फंदे पर झूलने के समय कहा था। चूँकि अधिकाँश लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल की रचना मानते है इसलिए इस रचना को बिस्मिल के पन्ने पर भी रखा गया है। -- कविता कोश टीम
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है