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"हंगामा है क्यूँ बरपा / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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फ़ितरत= प्रकृति
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19:36, 10 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़<ref>धर्मोपदेशक</ref> की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद<ref>मनोरथ</ref> है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

वां<ref>वहाँ</ref> दिल में कि दो सदमे,यां<ref>यहाँ</ref> जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही<ref>दैवी प्रकाश</ref> से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत<ref>प्रकृति</ref> के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है

शब्दार्थ
<references/>