भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हंगामा है क्यूँ बरपा / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अकबर इलाहाबादी | |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKPrasiddhRachna}} | |
− | हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है | + | {{KKCatGhazal}} |
− | डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है | + | <poem> |
+ | हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है | ||
+ | डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है | ||
− | ना-तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं | + | ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़<ref>धर्मोपदेशक</ref> की ये बातें हैं |
− | + | इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है | |
− | + | उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना | |
+ | मक़सूद<ref>मनोरथ</ref> है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है | ||
− | + | वां<ref>वहाँ</ref> दिल में कि दो सदमे,यां<ref>यहाँ</ref> जी में कि सब सह लो | |
− | + | उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है | |
− | + | हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही<ref>दैवी प्रकाश</ref> से | |
+ | हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है | ||
− | + | सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत<ref>प्रकृति</ref> के करिश्मे हैं | |
− | + | बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है | |
− | + | </poem> | |
− | + | {{KKMeaning}} | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं | + | |
− | बुत हम को | + | |
− | + | ||
− | + |
19:36, 10 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है
ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़<ref>धर्मोपदेशक</ref> की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है
उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद<ref>मनोरथ</ref> है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है
वां<ref>वहाँ</ref> दिल में कि दो सदमे,यां<ref>यहाँ</ref> जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है
हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही<ref>दैवी प्रकाश</ref> से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है
सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत<ref>प्रकृति</ref> के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है
शब्दार्थ
<references/>