"है नमन उनको / कुमार विश्वास" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार= कुमार विश्वास | |रचनाकार= कुमार विश्वास | ||
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− | + | ''मेरी यह कविता आप के बलिदान के सामने कुछ भी नहीं ... बस एक प्रणाम भर है मेरी पीढी का और हिंदी कविता का .... आप के चरणों में शत शत नमन .... आप सदा हमारे हीरो रहेंगे ...'' | |
− | + | <poem> | |
− | है नमन उनको | + | है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर |
− | + | इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं | |
− | इस जगत के | + | है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय |
− | + | जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं | |
− | है नमन | + | है नमन उस देहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैया |
− | + | घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं | |
− | जो धरा पर गिर | + | है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय .... |
− | + | हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ | |
− | + | हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है | |
− | + | नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी | |
− | + | सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे | |
− | + | शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है | |
− | + | जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी | |
− | + | उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है | |
− | + | है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन | |
− | + | काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं | |
− | + | है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय | |
− | + | जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं | |
− | + | लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे | |
− | + | विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है | |
− | + | राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाऒं | |
− | + | देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है | |
− | + | बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे | |
− | + | पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है | |
− | + | है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन | |
− | है नमन उस देहरी | + | शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं |
− | + | कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने | |
− | घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये | + | राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है |
− | + | है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय | |
− | है नमन उनको | + | जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये |
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− | नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी | + | |
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− | बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे | + | |
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− | राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है | + | |
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15:18, 12 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
मेरी यह कविता आप के बलिदान के सामने कुछ भी नहीं ... बस एक प्रणाम भर है मेरी पीढी का और हिंदी कविता का .... आप के चरणों में शत शत नमन .... आप सदा हमारे हीरो रहेंगे ...
है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
है नमन उस देहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय ....
हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाऒं
देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं
कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये