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"कामना - 2 / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर

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पुलकित बने अपुलकित रह-रह विपुल प्रजा बहु रोई;
 
पुलकित बने अपुलकित रह-रह विपुल प्रजा बहु रोई;
 
आशा-उषा राग-रंजित हो जागे जनता सोई।
 
आशा-उषा राग-रंजित हो जागे जनता सोई।
तंत्री के तार
 
टूट गये तंत्री के तार;
 
रही नहीं अब वह स्वर-लहरी, रही नहीं अब वह झंकार।
 
कुसुमोपम मृदु उँगली से छिड़ नहीं बरसते हैं रस-धार;
 
हैं प्रदान करते न पवन को मुग्धकरी धवनि मधुर अपार।
 
हैं न कान को सुधा पिलाते, हैं न हृदय हरते प्रति बार;
 
हैं न सुनाते सरस रागिनी, बनते हैं न सरसता-सार।
 
हैं न उमंगित करते मानस, हैं न तरंगित चित आधार;
 
हैं न बहाते वसुधातल में रसमय उर के सोत उदार।
 
मर्म-व्यथा
 
बिखर रहा है चंद हमारा।
 
सकल-लोक-मानस-अवलंबन, जगतीतल-लोचन का तारा;
 
राका-रजनि-अंक-अनुरंजन है आवरित निविड़ घन द्वारा।
 
है हो रहा अकांत कांत तन बहु नीरस सरसित रस-धारा;
 
अधाम सिंहिकानंदन से है अवनीतल-अभिनंदन हारा।
 
सुधा-धाम है सुधा-विहीन-सा, मुद-विहीन है कुमुद-सहारा;
 
पानिप-हीन आज है होता प्रतिपल पाथ-नाथ-सुत प्यारा।
 
तदपि गगनतल है न विकंपित, अतुलित व्यथित न कोई तारा;
 
अहह रसातल है सिधारता भव-वल्लभ, दिवलोक-दुलारा!
 

18:53, 16 जुलाई 2013 के समय का अवतरण


उपजे महारथी प्रभु कोई;
हरे भार भारत-भूतल का भूति लाभ कर खोई।
अनुपम साहस-सलिल-धार से जाय हित-धारा धोई;
उलहे बेलि अलौकिक यश की विजय-अवनि में बोई।
पुलकित बने अपुलकित रह-रह विपुल प्रजा बहु रोई;
आशा-उषा राग-रंजित हो जागे जनता सोई।