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"बारिश : चार प्रेम कविताएँ-2 / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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ख़ूब बारिश होगी | ख़ूब बारिश होगी | ||
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फिर आएगी बाढ़ | फिर आएगी बाढ़ | ||
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दर-बदर हो जाएंगे माल-मवेशी | दर-बदर हो जाएंगे माल-मवेशी | ||
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घर की दीवारों में | घर की दीवारों में | ||
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पहुँच जाएगा पानी | पहुँच जाएगा पानी | ||
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क्या तुम्हें अच्छा लगेगा प्रिय | क्या तुम्हें अच्छा लगेगा प्रिय | ||
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तुम जिस वर्ग की हो | तुम जिस वर्ग की हो | ||
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वहाँ लगातार बारिश से | वहाँ लगातार बारिश से | ||
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कोई फ़र्क नहीं पड़ता | कोई फ़र्क नहीं पड़ता | ||
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लेकिन जिस दुनिया में हम | लेकिन जिस दुनिया में हम | ||
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रहते हैं वहाँ | रहते हैं वहाँ | ||
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ज़्यादा बारिश का मतलब | ज़्यादा बारिश का मतलब | ||
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अच्छी फसलों से हाथ | अच्छी फसलों से हाथ | ||
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धो बैठना | धो बैठना | ||
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मिट्टी के मकानों का लद्द-लद्द गिरना | मिट्टी के मकानों का लद्द-लद्द गिरना | ||
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तुमने गाँव नहीं देखे हैं | तुमने गाँव नहीं देखे हैं | ||
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जिया नहीं है वहाँ का | जिया नहीं है वहाँ का | ||
− | |||
कठिन जीवन | कठिन जीवन | ||
− | |||
तुम क्या जानो | तुम क्या जानो | ||
− | |||
यह पानी का आवेग | यह पानी का आवेग | ||
− | |||
हमारे जीवन से क्या-क्या | हमारे जीवन से क्या-क्या | ||
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बहा ले जाता है | बहा ले जाता है | ||
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09:31, 22 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
ख़ूब बारिश होगी
फिर आएगी बाढ़
दर-बदर हो जाएंगे माल-मवेशी
घर की दीवारों में
पहुँच जाएगा पानी
क्या तुम्हें अच्छा लगेगा प्रिय
तुम जिस वर्ग की हो
वहाँ लगातार बारिश से
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
लेकिन जिस दुनिया में हम
रहते हैं वहाँ
ज़्यादा बारिश का मतलब
अच्छी फसलों से हाथ
धो बैठना
मिट्टी के मकानों का लद्द-लद्द गिरना
तुमने गाँव नहीं देखे हैं
जिया नहीं है वहाँ का
कठिन जीवन
तुम क्या जानो
यह पानी का आवेग
हमारे जीवन से क्या-क्या
बहा ले जाता है