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"कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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पूर्णमासी की रात जंगल में
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पूर्णमासी की रात जंगल में<BR>
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पूर्णमासी की रात जंगल में
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गुनगुनाती हुई हवा जानम<BR>
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कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी<BR>
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15:22, 23 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
तुमको ये चाँदनी की आवज़ें

पूर्णमासी की रात जंगल में
नीले शीशम के पेड़ के नीचे
बैठकर तुम कभी सुनो जानम
भीगी-भीगी उदास आवाज़ें
नाम लेकर पुकारती है तुम्हें
पूर्णमासी की रात जंगल में...

पूर्णमासी की रात जंगल में
चाँद जब झील में उतरता है
गुनगुनाती हुई हवा जानम
पत्ते-पत्ते के कान में जाकर
नाम ले ले के पूछती है तुम्हें

पूर्णमासी की रात जंगल में
तुमको ये चाँदनी आवाज़ें
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी