"आइने कितने यहाँ टूट चुके हैं अब तक / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर
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आइने कितने यहाँ टूट चुके हैं अब तक | आइने कितने यहाँ टूट चुके हैं अब तक | ||
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आफ़रीं उन पे जो सच बोल रहे हैं अब तक | आफ़रीं उन पे जो सच बोल रहे हैं अब तक | ||
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टूट जाएँगे मगर झुक नहीं सकते हम भी | टूट जाएँगे मगर झुक नहीं सकते हम भी | ||
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अपने ईमाँ की हिफ़ाज़त में तने हैं अब तक | अपने ईमाँ की हिफ़ाज़त में तने हैं अब तक | ||
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रहनुमा उनका वहाँ है ही नहीं मुद्दत से | रहनुमा उनका वहाँ है ही नहीं मुद्दत से | ||
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क़ाफ़िले वाले किसे ढूँढ रहे हैं अब तक | क़ाफ़िले वाले किसे ढूँढ रहे हैं अब तक | ||
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अपने इस दिल को तसल्ली नहीं होती वरना | अपने इस दिल को तसल्ली नहीं होती वरना | ||
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हम हक़ीक़त तो तेरी जान चुके हैं अब तक | हम हक़ीक़त तो तेरी जान चुके हैं अब तक | ||
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फ़त्ह कर सकता नहीं जिनको जुनूँ महज़ब का | फ़त्ह कर सकता नहीं जिनको जुनूँ महज़ब का | ||
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कुछ वो तहज़ीब के महफ़ूज़ क़िले हैं अब तक | कुछ वो तहज़ीब के महफ़ूज़ क़िले हैं अब तक | ||
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उनकी आँखों को कहाँ ख़्वाब मयस्सर होते | उनकी आँखों को कहाँ ख़्वाब मयस्सर होते | ||
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नींद भर भी जो कभी सो न सके हैं अब तक | नींद भर भी जो कभी सो न सके हैं अब तक | ||
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देख लेना कभी मन्ज़र वो घने जंगल का | देख लेना कभी मन्ज़र वो घने जंगल का | ||
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जब सुलग उठ्ठेंगे जो ठूँठ दबे हैं अब तक | जब सुलग उठ्ठेंगे जो ठूँठ दबे हैं अब तक | ||
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रोज़ नफ़रत की हवाओं में सुलग उठती है | रोज़ नफ़रत की हवाओं में सुलग उठती है | ||
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एक चिंगारी से घर कितने जले हैं अब तक | एक चिंगारी से घर कितने जले हैं अब तक | ||
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इन उजालों का नया नाम बताओ क्या हो | इन उजालों का नया नाम बताओ क्या हो | ||
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जिन उजालों में अँधेरे ही पले हैं अब तक | जिन उजालों में अँधेरे ही पले हैं अब तक | ||
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पुरसुकून आपका चेहरा ये चमकती आँखें | पुरसुकून आपका चेहरा ये चमकती आँखें | ||
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आप भी शह्र में लगता है नये हैं अब तक | आप भी शह्र में लगता है नये हैं अब तक | ||
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ख़ुश्क़ आँखों को रवानी ही नहीं मिल पाई | ख़ुश्क़ आँखों को रवानी ही नहीं मिल पाई | ||
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यूँ तो हमने भी कई शे’र कहे हैं अब तक | यूँ तो हमने भी कई शे’र कहे हैं अब तक | ||
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दूर पानी है अभी प्यास बुझाना मुश्किल | दूर पानी है अभी प्यास बुझाना मुश्किल | ||
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और ‘द्विज’! आप तो दो कोस चले हैं अब तक | और ‘द्विज’! आप तो दो कोस चले हैं अब तक | ||
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10:12, 29 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
आइने कितने यहाँ टूट चुके हैं अब तक
आफ़रीं उन पे जो सच बोल रहे हैं अब तक
टूट जाएँगे मगर झुक नहीं सकते हम भी
अपने ईमाँ की हिफ़ाज़त में तने हैं अब तक
रहनुमा उनका वहाँ है ही नहीं मुद्दत से
क़ाफ़िले वाले किसे ढूँढ रहे हैं अब तक
अपने इस दिल को तसल्ली नहीं होती वरना
हम हक़ीक़त तो तेरी जान चुके हैं अब तक
फ़त्ह कर सकता नहीं जिनको जुनूँ महज़ब का
कुछ वो तहज़ीब के महफ़ूज़ क़िले हैं अब तक
उनकी आँखों को कहाँ ख़्वाब मयस्सर होते
नींद भर भी जो कभी सो न सके हैं अब तक
देख लेना कभी मन्ज़र वो घने जंगल का
जब सुलग उठ्ठेंगे जो ठूँठ दबे हैं अब तक
रोज़ नफ़रत की हवाओं में सुलग उठती है
एक चिंगारी से घर कितने जले हैं अब तक
इन उजालों का नया नाम बताओ क्या हो
जिन उजालों में अँधेरे ही पले हैं अब तक
पुरसुकून आपका चेहरा ये चमकती आँखें
आप भी शह्र में लगता है नये हैं अब तक
ख़ुश्क़ आँखों को रवानी ही नहीं मिल पाई
यूँ तो हमने भी कई शे’र कहे हैं अब तक
दूर पानी है अभी प्यास बुझाना मुश्किल
और ‘द्विज’! आप तो दो कोस चले हैं अब तक